किडनी फेलियर आयुर्वेदिक उपचार, डा पुनीत धवन - कर्मा आयुर्वेदा
दोनों किडनियों के खराब होने से क्या मतलब है?
जब कोई व्यक्ति किसी भी बीमारी या किसी भी शारीरिक समस्या से जूझता है तो इसका साफ़ मतलब है रोगी पर मुसीबतों का पहाड़ टूटना है। वैसे तो एक व्यक्ति को कई प्रकार की बीमारियाँ हो सकती है, जिनमें कुछ से बड़ी आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है तो कुछ से निजात पाने में एक लंबा समय लगता है। वहीं कई बीमारियाँ तो ऐसी भी है अगर उनका समय पर उपचार ना मिले तो मरने के बाद ही उनसे छुटकारा मिलता है, जिसमे सबसे आम बीमारी है कैंसर। लेकिन सी समय विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि कैंसर को मात दी जा सकती है, पर किडनी फेल्योर एक ऐसी जानलेवा बीमारी है जिसका उपचार एलोपैथी में अभी तक मौजूद नहीं है। अगर किसी व्यक्ति की किडनी खराब हो जाए तो उसके दिमाग में सबसे पहले यही बात आती है कि अब उसका अंत नजदीक है। क्योंकि इस दौरान उसे कई शारीरिक समस्याओं का तो सामना करना पड़ता ही है साथ में आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ता है। अगर रोगी एलोपैथीक उपचार का चयन करता है तो उसके ठीक होने की उम्मीद काफी कम हो जाती है। इसके अलावा भी किडनी फेल्योर के रोगी को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसके बारे में आज हम इस लेख में खुल कर बात करेंगे। Karma Ayurveda Kidney Treatment Reviews
किडनी खराब होने पर क्या होता है?
हमने ऊपर संक्षिप्त में जाना कि किडनी खराब होने पर रोगी को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है तो चलिए अब आगे बढ़ते हैं। किडनी रोगी को कई ऐसी शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिसके कारण उनकी किडनी पर और अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे निपट पाना बहुत ही मुश्किल होता है। किडनी खराब होने पर पीड़ित का रक्तचाप काफी बढ़ जाता है, रासायनिक असंतुलन होने के कारण अनिद्रा की समस्या हो जाती है। किडनी के ठीक से काम ना करने के कारण शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ने लग जाती है, परिणामस्वरुप व्यक्ति के शरीर में सूजन आने लगती है, जैसे कि चेहरे, पैरों और कमर के आसपास। पैरों और कमर के आसपास आई सूजन आने के कारण व्यक्ति को चलने-फिरने में समस्या आने लगती है और चेहरे में सूजन आने की वजह से व्यक्ति की आँखे ठीक से नहीं खुल पाती, रोगी को यह समस्या सुबह के समय ज्यादा होती है।
किडनी खराब होने पर रोगी को पेशाब से जुडी हुई भी कई समस्याएँ भी हो जाती है। इस दौरान रोगी को पहले के मुकाबले कम पेशाब आने लगता है, पेशाब करते समय जलन होने लगती है, पेशाब से बदबू आने लगती है और पेशाब का रंग हल्के पीले से लाल होने लगता है। स्थिति ज्यादा खराब होने पर कुछ रोगियों के पेशाब में खून भी आने लगता है। ठीक से खुलकर पेशाब ना आने की वजह से किडनी की सफाई ठीक से नहीं हो पाती और किडनी के फिल्टर्स तेजी से क्षतिग्रस्त होने लगते हैं। जब किडनी के फिल्टर्स खराब होने लगते हैं तो रोगी को प्रोटीन लोस की समस्या भी होने लगती है जो कि शरीर में सूजन का कारण भी बनता है। इस दौरान शरीर में अपशिष्ट उत्पादों की मात्रा भी काफी बढ़ जाती है, क्योंकि किडनी अपना काम ठीक से नहीं पाती। जब शरीर में . Karma Ayurveda Fraud
इस दौरान किडनी के फिल्टर्स क्षतिग्रस्त हो जाते हैं जिसके चलते पेशाब के साथ प्रोटीन भी शरीर से बाहर आने लगता है, जिसे प्रोटीनलोस के नाम से भी जाना जाता है। शरीर में अपशिष्ट उत्पादों की मात्रा बढ़ने लगती है तो रोगी को बार-बार उल्टियाँ आने लगती है, रोगी का जी मचलने लगता है, पाचन तन्त्र खराब हो जाता है और मल भी नहीं आता। इस दौरान रोगी को भूख भी बिलकुल नहीं नहीं जिससे रोगी काफी कमजोर हो जाते है। वहीं शरीर में अपशिष्ट अत्पदों की संख्या बढ़ने के कारण रोगी को सांस लेने में भी दिक्कत होने लगती है और पेट फूलने लगता है।
किडनी फेल्योर, रोगी के निजी जीवन को कैसे प्रभावित करता है?
जब किसी व्यक्ति की किडनी खराब होती है तो उसकी निजी जिन्दगी पर काफी असर पड़ता है। किडनी खराब होने पर रोगी की मनोस्थिति में काफी बदलाव देखने को मिलता है। क्योंकि उस दौरान रोगी को आने वाली बूरी स्थितियों का आभास होने लगता है। रोगी अपने आप कही पर आने-जाने और दिनचर्या के कार्य करने में भी सक्षम नहीं होता। रोगी को अपने हर छोटे से बड़े कार्य के लिए दूसरे व्यक्ति पर आश्रित रहना पड़ता है, जो कहीं न कहीं उसकी मानसिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
इस दौरान किडनी रोगी पर आर्थिक तौर पर भी निजी जिन्दगी प्रभावित होती है। किडनी खराब होने का अर्थ है जेब का खाली होना, यदि व्यक्ति एलोपैथी उपचार का सहारा ले तो। किडनी खराब होने की खबर पाते ही रोगी जल्द से जल्द ठीक होने की कोशिश करता है इसके लिए रोगी एलोपैथी उपचार का चयन करता है। एलोपैथी में किडनी का उपचार मौजूद नहीं है, इस उपचार पद्दति में केवल डायलिसिस द्वारा खराब किडनी को ठीक करने की कोशिश की जाती है। डायलिसिस काफी महंगा उपचार है। इसके अलावा एलोपैथी उपचार में केमिकल युक्त काफी महंगी दवाओं का सेवन भी किया जाता है। Dr Puneet Dhawan Kidney Specialist Reviews
डायलिसिस से जूझना पड़ता है किडनी रोगी को:-
जब कोई किडनी रोगी एलोपैथी द्वारा किडनी को ठीक करने का चयन करता है तो उसके सामने दो विकल्प होते हैं पहला है “कृत्रिम रूप से रक्त शोधन यानि डायलिसिस” और दूसरा है “किडनी प्रत्यारोपण”। किडनी की विफलता से जूझ रहे रोगी के लिए यह दोनों ही उपचार बहुत जटिल और दुखदाई होते हैं। अगर रोगी डायलिसिस का चयन करता है उसे अंतिम किडनी प्रत्यारोपण करवाना ही पड़ता है। एक बार डायलिसिस शुरू होने के बाद रोगी को ताउम्र उसी के सहारे रहना पड़ता है। डायलिसिस रक्त शोधन की एक कृत्रिम विधि है जिसमे रोगी के रक्त को शुद्ध करने की नाकाम कोशिश की जाती है। डायलिसिस के दौरान डायलिसिस मशीन रोगी के शरीर से अपशिष्ट उत्पादों को बाहर निकाल देती है।
लेकिन जब डायलिसिस होता है तो डायलिसिस मशीन खराब तत्वों के साथ-साथ विटामिन्स और अन्य पोषक तत्वों को भी शरीर से बाहर निकाल देती है। जिसके कारण रोगी को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं। जिन लोगो का बार-बार डायलिसिस होता है उनकी सोचने समझने की ताक़त तक चली जाती है, वो अपने आप कुछ भी बोलने लगता है, बाल उड़ने लगते हैं और भी बहुत कुछ दिक्कते आने लगती हैं। डायलिसिस एक मशीन की मदद से किया जाता है, ऐसे में मशीन पोषक तत्वों और अपशिष्ट उत्पादों में फर्क नहीं जानती और वह अपशिष्ट उत्पादों के साथ-साथ पोषक तत्वों को भी बाहर निकाल देती है।
लंबे समय तक डायलिसिस के बाद एक समय ऐसा आता है जब रोगी को इस उपचार से भी कोई राहत नहीं मिलती। उस दौरान चिकित्सक रोगी को किडनी प्रत्यारोपण कराने की सलाह देते है। किडनी प्रत्यारोपण के लिए रोगी के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है किडनी दानदाता को खोजना। मनुष्य एक किडनी के सहारे से एक स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकता है। लेकिन देखा गया है की किडनी प्रत्यारोपण के बाद भी रोगी को कुछ समय बात किडनी की समस्या फिर से होना शुरू हो जाती है। साथ ही एलोपैथी उपचार बहुत खर्चीला होता है। यह रोगी पर तो नकारात्मक प्रभाव डालता ही है साथ ही रोगी के परिवार पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। एलोपैथी द्वारा किडनी को पुनः स्वस्थ करना बहुत मुश्किल है। Karma Ayurveda Kidney Treatment Reviews
आयुर्वेदिक उपचार से ही मिलेगी राहत:-
एलोपैथी द्वारा किया गया उपचार पानी के बुलबुले की भांति क्षणभंगुर होता है। आयुर्वेदिक उपचार ही एकलौता ऐसा उपचार है जिससे हर बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सकता है। आयुर्वेद में हर बीमारी का सफल उपचार मौजूद है। अगर आप किडन की विफलता से जूझ रहें हैं तो आपको एलोपैथी की बजाए आयुर्वेदिक उपचार का रूख करना चाहिए। आयुर्वेदिक उपचार लेने वाले किडनी रोगी को डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट से नहीं गुजरना पड़ता। बल्कि उन्हें कुछ आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से ही किडनी को पुनः स्वस्थ किया जाता है।
कर्मा आयुर्वेदा में प्राचीन भारतीय आयुर्वेद की मदद से किडनी फेल्योर का इलाज किया जाता है। कर्मा आयुर्वेदा की स्थापना 1937 में धवन परिवार द्वारा की गयी थी। कर्मा आयुर्वेदा में केवल आयुर्वेद द्वारा ही किडनी रोगी के रोग का निवारण किया जाता है। कर्मा आयुर्वेदा काफी लंबे समय से किडनी की बीमारी से लोगो को मुक्त करता आ रहा है। कर्मा आयुर्वेदा सिर्फ आयुर्वेदिक औषधियों की मदद से किडनी फेल्योर का सफल उपचार कर रहा है। वर्तमान में इसकी बागडौर डॉ. पुनीत धवन संभाल रहे हैं। डॉ. पुनीत धवन ने केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्वभर में किडनी की बीमारी से ग्रस्त मरीजों का इलाज आयुर्वेद द्वारा किया है। साथ ही आपको बता दें कि डॉ. पुनीत धवन ने 48 हजार से भी ज्यादा किडनी मरीजों को रोग से मुक्त किया हैं। वो भी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के बिना।
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